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राजनीतिक नियुक्तियों में देरी खल रही, असर सदस्यता अभियान पर भी, हो रही है कवायद

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राज्य में भाजपा सरकार को गठित हुए 10 महीनें हो गए मगर अभी तक चंद राजनीतिक नियुक्तियां ही हो सकी है। नियुक्तियां भी वही की गई है जिनका असर लोकसभा चुनाव पर पड़ा। कई टिकट काटने थे तो लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले नियुक्तियां कर नेताओं को एडजेस्ट किया गया। लोकसभा चुनाव में भाजपा मिशन 25 में विफल रही और 11 सीटें हार गई। उसके बाद तो नियुक्तियों का सिलसिला थम गया। पहले 5 और फिर 7 विधानसभा सीटें रिक्त हो गई। इन सीटों पर अब उप चुनाव होने हैं, नियुक्तियां इस कारण भी रुकी।


राज बदलते ही जिले से लेकर राज्य स्तर तक कार्यकर्ता व नेता नियुक्तियों के लिए कदमताल करने लग जाते हैं, अभी कर भी रहे हैं। 5 साल के सूखे के बाद कार्यकर्ता राज में भागीदारी की आकांक्षा रखते हैं, वो भाजपा कार्यकर्ताओं में भी है। सरकार के सामने इस समस्या का आसान रास्ता नहीं रहता, क्योंकि वो कार्यकर्ताओं की नाराजगी को सहन नहीं कर सकती। नियुक्तियों से कुछ प्रसन्न होने हैं तो कुछ स्वाभाविक रूप से नाराज भी होते हैं।


राजनीतिक नियुक्तियों न होने का असर भी व्यापक होता है। भाजपा में तो इसका असर इस बार साफ दिख रहा है। भाजपा ने राज्य में एक करोड़ नये सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा। जिसे सीएम ने बढ़ाकर 1.2 करोड़ कर लिया। मगर अब तक एक तिहाई सदस्य भी नहीं बनाए जा सके हैं। यदि जिला स्तर की ही राजनीतिक नियुक्तियों का पिटारा खोल दिया जाता तो ये स्थिति नहीं रहती। राज में भागीदारी का अहसास रखने वाला कार्यकर्ता जोश के साथ सदस्यता अभियान का हिस्सा बनता। मगर अभी तक कार्यकर्ता जोश में नहीं आ सका है, वो हताश होकर केवल औपचारिकता भर पूरी कर रहा है।


संगठन में भी नियुक्तियां न होना इसकी बड़ी वजह है। पार्टी ने सी पी जोशी की जगह मदन राठौड़ को नया प्रदेश अध्यक्ष तो बना दिया मगर अभी तक प्रदेश भाजपा की टीम गठित नहीं हुई है। पुराने पदाधिकारियों से ही काम चल रहा है। अनेक प्रदेश पदाधिकारी सांसद, विधायक बन गये तो जाहिर है उनको संगठन के लिए कम समय मिलता है। कई राज्य स्तर के नेता प्रदेश पदाधिकारी बनने की दौड़ में है, वो नियुक्तियां भी नहीं हो रही। ठीक इसी तरह अनेक जिलों में भी पार्टी का संगठन बदलना है। ऐसे में जिनको हटना है वे पूरे मन से नहीं लगे हुए हैं और जिनको नियुक्ति की उम्मीद है वे नियुक्ति न होने तक उतने सक्रिय नहीं। सरकार व संगठन में नियुक्तियां न होने का असर साफ साफ दिख भी रहा है।


मगर ऐसा भी नहीं है कि सरकार व संगठन इस समस्या से अपरिचित हैं। उनको इस समस्या का अंदाजा है और इसी कारण मंत्रियों को फील्ड में उतारा है और उनको कहा है कि वे कार्यकर्ताओं से मुलाकात करें। उनके काम करें। मगर इसमें भी बड़ी अड़चन तबादलों पर लगी रोक है। कार्यकर्ता कुछ ऐसे भी हैं जो तबादले चाहते हैं, उस पर से सरकार रोक उप चुनाव निकट होने के कारण नहीं हटा रही। प्राप्त जानकारी के अनुसार अब इस विषय की गम्भीरता को देखते हुए राजनीतिक नियुक्तियों की कवायद शुरू की है। राज्य स्तर के लिए जो नियुक्तियां होनी है उसके लिए भी पैनल बनाया जा रहा है। जिसमें विधायकों, सांसदों की राय भी ली जा रही है। ठीक इसी तरह जिला स्तर की नियुक्तियों के लिए भी सूचियां बनने लगी है। संगठन के लोगों से, विधायकों से, सांसद से लोग सिफारिशी पत्र भी लिखवाने लगे हैं। राजनीतिक नियुक्तियों का पिटारा लगता है अब जल्दी ही खुलने वाला है। हलचल से तो यही आभाष हो रहा है।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।